झिंझाना 17 जनवरी। जिंदगी कब किस मोड़ पर लाकर खड़ा कर दे यह बात रक्षा मंत्रालय के उच्च पद से रिटायर्ड सोमदत्त शर्मा से बेहतर भला कौन जान सकता है । निकटवर्ती गांव दरगाह पुर निवासी लाल सिंह के पुत्र सोमदत्त शर्मा एक ऐसी *शख्सियत है जिनका बखान चंद शब्दों या कुछ दिनों में नहीं किया जा सकता हैं।*
रक्षा मंत्रालय से वर्ष 1992 में उच्च पद से सेवानिवृत्त पेंशन धारी, ईमानदार स्वाभिमानी ,कर्तव्यनिष्ठ शख्सियत आज अपने सौवें दशक के पड़ाव में एक चारपाई पर सिमट कर रह गई है। जिंदादिली शख्सियत आज भी स्वाभिमानी ढंग से अपनी जिंदगी आनंद पूर्वक बिताते हुए परमात्मा का धन्यवाद करती हैं । हालांकि इनके वंश में बची इनकी एकमात्र बेटी अनुराधा दिल्ली में अपने परिवार के साथ रहती है। और कुनबे के दीपक शर्मा निस्वार्थ इनकी सेवा में दिन रात
लगे हुए हैं।
परमात्मा के प्रति आश्वस्त स्वाभिमानी ईमानदार एवं कर्तव्यनिष्ठ शर्मा जी एलोपैथी को दुहाई देते हुए आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति पर भरोसा करते हैं । शर्मा जी का कहना है की चिकित्सकों की गलतियों के कारण वर्ष 2015 से उनका जीवन मात्र एक चार पाई पर ही सिमट कर रह गया है।14/15 अगस्त 15 में वह रात में जब लघुशंका के लिए अपने घर पर ही चारपाई से उठकर चले थे कि अचानक गिर गए। जिसके बाद सवेरे ही पड़ोसियों ने उन्हें बेसुध अवस्था में देखकर चिकित्सा व्यवस्था दिलवाई। जिसके चलते दिल्ली अरबिन हॉस्पिटल में उनका इलाज चला। मगर चिकित्सकों की लापरवाही का खामियाजा वह आज तक भुगत रहे हैं । जिसके कारण एलोपैथी व चिकित्सकों से उनका भरोसा टूट गया है । क्योंकि चिकित्सालय में उनके दाहिने हाथ की कोहनी का ऑपरेशन किया गया था। जो आज भी स्पष्ट है। वह अपने दाहिने हाथ से आज भी खाना नहीं खा पा रहे हैं। और उनके दोनों घुटने इतना मुड़े हुए हैं कि वह सिर्फ पालथी मारकर तो बैठ सकते हैं। परंतु घुटने सीधे न हो पाने के कारण वह अपने पैरों पर खड़े होकर चल फिर नहीं सकते। परिणाम स्वरूप उनका जीवन एक चारपाई पर सिमट कर रह गया है।
इसे संयोग ही कहेंगे कि आज एक खंडहर मकान में वह दूसरी मंजिल के एकमात्र कमरे में स्थित चारपाई पर ही अपनी दिनचर्या गुजारने को मजबूर हैं। यूं तो लगभग ₹26-27 हजार मासिक पेंशन उनको मिल रही है। परंतु उनके परिवार में उनके पास वर्तमान में कोई बैटा बेटी पत्नी नहीं है। वर्तमान में एकमात्र बेटी अनुराधा जो दिल्ली में अपने परिजनों के साथ रहती है । इनकी पत्नी और बेटे स्वर्ग सिधार चुके है। पड़ोसी एवं कुनबे का युवक दीपक शर्मा उनकी सेवा में निस्वार्थ भाव से लगा रहता है। 90 के दशक को पार कर चुके सोमदत्त शर्मा मन मस्तिष्क एवं शरीर से आज भी धनी समझे जाते हैं। परंतु बेबसी के चलते एक मजबूत शख्सियत आज भी एकमात्र चारपाई पर अपनी जिंदगी जी रही है। जो एक मिसाल है। अखबार , धार्मिक ग्रंथ , रेडियो टेलीविजन उनकी दिनचर्या का बेहतर माध्यम है । मोबाइल से दूर रहकर वह अपनी जिंदगी जीना बेहतर समझ रहे हैं।
प्रेम चंद वर्मा
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