ललितपुर न्यूज:- 53 वें दीक्षा दिवस पर आचार्य गुरूवर विद्यासागरजी महाराज के चरणों में अहिंसा सेवा संगठन ने की विनयांजलि समर्पित।
 ललितपुर। अहिंसा सेवा संगठन ने 53 वें दीक्षा दिवस की पूर्व संध्या पर विश्व-वंदनीय जैन संत, भारत भूमि के प्रखर तपस्वी, चिंतक, कठोर साधक, लेखक आचार्य गुरूवर श्री 108 विद्यासागरजी महाराज के चरणों में विनयांजलि समर्पित की। इस मौके पर अहिंसा सेवा संगठन (एएसएस) के संस्थापक विशाल जैन पवा ने बताया विक्रम संवत् 2003 सन् 1946 आश्विन शुक्ल पूर्णिमा दिन गुरुवार की चांदनी रात में कर्नाटक, जिला बेलगाम के ग्राम सदलगा के निकट चिक्कोड़ी ग्राम में धन-धान्य से संपन्न श्रावक श्रेष्ठी पिता श्री मलप्पाजी अष्टगे और धर्मनिष्ठ श्राविका माता श्रीमतीजी अष्टगे के घर एक विद्याधर बालक का जन्म हुआ। वह आज संत शिरोमणि राष्ट्रसंत आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के नाम से विश्व विख्यात हैं। आचार्यश्री कन्नड़ मातृभाषी हैं और कन्नड़ एवं मराठी भाषाओं में आपने हाईस्कूल तक शिक्षा ग्रहण की, लेकिन आज आप बहुभाषाविद् हैं और कन्नड़ एवं मराठी के अलावा हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश और बंगला जैसी अनेक भाषाओं के भी ज्ञाता हैं। विद्याधर बाल्यकाल से ही साधना को साधने और मन एवं इन्द्रियों पर नियंत्रण करने का अभ्यास करते थे, लेकिन युवावस्था की दहलीज पर कदम रखते ही उनके मन में वैराग्य का बीज अंकुरित हो गया। मात्र 20 वर्ष की अल्पायु में गृह त्यागकर आप जयपुर(राजस्थान) पहुंच गए और वहां विराजित आचार्यश्री देशभूषणजी महाराज से आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत लेकर उन्हीं के संघ में रहते हुए धर्म, स्वाध्याय और साधना करते रहे। कठिन साधना का मार्ग पार करते हुए विद्याधर ने महज 22 वर्ष की उम्र में 30 जून 1968 को अजमेर में आचार्य ज्ञानसागर महाराज से मुनि दीक्षा ली। गुरुवर ने उन्हें विद्याधर से मुनि विद्यासागर बनाया। 22 नवंबर 1972 को अजमेर में ही गुरुवर ने आचार्य की उपाधि देकर उन्हें मुनि विद्यासागर से आचार्य विद्यासागर बना दिया। आचार्य पद की उपाधि मिलने के बाद आचार्य विद्यासागर ने देश भर में पदयात्रा की, वह धर्म और आध्यात्म के प्रभावी प्रवक्ता और श्रमण-संस्कृति की उस परमोज्ज्वल धारा के अप्रतिम प्रतीक हैं, जो सिन्धु घाटी की प्राचीनतम सभ्यता के रूप में आज भी अक्षुण्ण होकर समस्त विश्व को अपनी गौरव गाथा सुना रहे हैं। चातुर्मास, गजरथ महोत्सव के माध्यम से अहिंसा व सद्भाव का संदेश दिया। विद्यासागरजी में अपने शिष्यों का संवर्द्धन करने का अभूतपूर्व सामर्थ्य है। उनका बाह्य व्यक्तित्व सरल, सहज, मनोरम है किंतु अंतरंग तपस्या में वे वज्र-से कठोर साधक हैं। कन्नड़भाषी होते हुए भी विद्यासागरजी ने हिन्दी, संस्कृत, मराठी और अंग्रेजी में लेखन किया है। उन्होंने 'निरंजन शतकं', 'भावना शतकं', 'परीष हजय शतकं', 'सुनीति शतकं' व 'श्रमण शतकं' नाम से 5 शतकों की रचना संस्कृत में की है तथा स्वयं ही इनका पद्यानुवाद किया है। उनके द्वारा रचित संसार में सर्वाधिक चर्चित, काव्य-प्रतिभा की चरम प्रस्तुति है- 'मूकमाटी' महाकाव्य। यह रूपक कथा-काव्य, अध्यात्म, दर्शन व युग-चेतना का संगम है। संस्कृति, जन और भूमि की महत्ता को स्थापित करते हुए आचार्यश्री ने इस महाकाव्य के माध्यम से राष्ट्रीय अस्मिता को पुनर्जीवित किया है। वात्सल्य हो या भगवान की प्रतिमूर्ति की उपाधि, त्याग तपस्या की जीवंत मूर्ति संत विद्यासागर जी महाराज की खासियत है कि उनके चेहरे पर सदैव मुस्कान बिखरी रहती है। साथ ही इनके मानने वाले केवल जैन सम्प्रदाय के लोग नहीं है, बल्कि हर जाति के लोग इनको उतना ही सम्मान व आदर देते हैं। उनकी रचनाएं मात्र कृतियां ही नहीं हैं, वे तो अकृत्रिम चैत्यालय हैं। उनके उपदेश, प्रवचन, प्रेरणा और आशीर्वाद से अनेक चैत्यालय, जिनालय, स्वाध्याय शाला, गौशाला, प्रतिभास्थली, औषधालय आदि की स्थापना कई स्थानों पर हुई है और अनेक जगहों पर निर्माण जारी है। संत शिरोमणि 108 आचार्य श्री विद्या सागर जी महाराज ऐसे संत हैं जिनका जीवन एक सम्पूर्ण दर्शन है जिनके आचरण में जीवों के लिए करुणा पलती है जिनके विचारों में प्राणी मात्र का कल्याण है, जिनकी देशना में जगत अपने सद्विकास का मार्ग प्रशस्त करता है। आप निरीह, निस्पृह वीतरागी हैं, फिर भी आपके विचार भारतीयता के प्रति अगाध निष्ठा, राष्ट्रभक्ति और कर्तव्यपरायणता से ओतप्रोत है आपका चिंतन प्राचीन भारतीय हितचिंतको दार्शनिको एवं संतो का अनुकरण करते हुए भी मौलिक है। आचार्य महाराज के विचारों को संकलित करना छोटी सी अंजुली में सागर को भरने का असंभव प्रयास करना है। जैन दिगम्बर संत आचार्यश्री विद्यासागरजी की दीक्षा के 50 वर्ष पूर्ण होने पर 'संयम स्वर्ण महोत्सव' के रूप में छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ में यह महोत्सव 28, 29 और 30 जून 2017 को मनाया गया था। आज 25 जून 2020 को श्री विद्यासागर जी महाराज का 53वां दीक्षा दिवस देश में फैली वैश्विक महामारी और कोरोना वायरस को दृष्टिगत रखते हुए विश्व शांति की मंगल भावना के साथ विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों के मध्य हर्ष उल्लास के साथ मनाया जाएगा। विनयांजलि समर्पित करने वालों में अध्यक्ष अंकित जैन चौधरी महरौनी, महामंत्री अभिषेक जैन मोना भोपाल, मुख्य संयोजक जितेन्द्र कुमार जैन तालबेहट, वरिष्ठ उपाध्यक्ष बृजेश कुमार जैन शास्त्री बड़ागांव, समूह प्रवक्ता राजेश कुमार जैन रमगढ़ा, संयोजक अभिषेक जैन पाह, निर्देशिका आरजू जैन तालबेहट, कोषाध्यक्ष सोनाली जैन मोना, मंत्री आशा जैन नावई, ऑडीटर ज्योति जैन कारीटोरन आदि प्रमुख रहे।
सलाम खाकी न्यूज से प्रदेश ब्यूरो
पत्रकार इन्द्रपाल सिंह की रिपोर्ट
 

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