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ललितपुर न्यूज : महिलाओं के प्रति सम्मान की दृष्टि से मनाया गया महिला दिवस , दृढ़ निश्चय से ही महिलाओं का सशक्तिकरण किया जा सकता है - निशांत जैन

महिला सशक्तिकरण एक विचार है जिसे केवल दृढ़ निश्चय से ही धरातल पर उतारा जा सकता है निशांत जैन पवा




ललितपुर उत्तर प्रदेश 8 मार्च 2020  



अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं के प्रति सम्मान, प्रशंसा और प्यार प्रकट करते हुए इस दिन को महिलाओं के आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक उपलब्धियों के उपलक्ष में उत्सव के तौर पर मनाया जाता है। भारत में भी अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर समाज के विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए महिलाओं को सम्मानित भी किया जाता है। स्त्रियों के लिए कार्य करने वाले संगठन इस दिन विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण शिविर और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन करते हैं। भारत में नारियों को मौलिक अधिकार, मतदान का अधिकार और शिक्षा का अधिकार तो प्राप्त है लेकिन अभी भी स्त्रियां अभावों में जिंदगी बिता रही हैं। आज चाहे फिल्म हो, इंजीनियरिंग हो या मेडिकल, उच्च शिक्षा हो या प्रबंधन हर क्षेत्र में स्त्रियां पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। रविवार को अहिंसा सेवा संगठन के तत्वाधान में एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। अहिंसा सेवा संगठन के संस्थापक विशाल जैन पवा ने कहा महिला सशक्‍तीकरण जिसके लिए महिलाओं को स्‍वयं अपने अंदर की ताकत को पहचानना होगा, सशक्‍तीकरण हमारे अंदर की प्रेरणा से आता है। आत्‍म सम्‍मान का यह भाव यदि होगा तो आपकी बाहरी दुनिया भी उससे सीधे तौर पर प्रभावित होगी। सशक्‍तीकरण एक विचार है, जिसे धरातल पर केवल दृढ निश्‍चय से ही उतारा जा सकता है। महिलाओं को खुद में विश्वास का निर्माण करना सीखना होगा। संगठन के अध्यक्ष अंकित जैन चौधरी महरौनी ने कहा देश, समाज, भाषा, संस्‍कृति और रहन-सहन की सीमाओं से में आज पूरे विश्‍व की महिलाएं एक हैं। आज वे जिस भावना को महसूस करेंगी, उसमें समानता मुख्‍य भाव है। अब महिलाओं ने अपनी पहचान कायम कर ली है ऐसे में इसे कायम रखना सभी महिलाओं के लिए चुनौती भी है और दायित्‍व भी। हालात पहले से जरूर बदले हैं लेकिन पूरी तरह से अभी भी नहीं बदल पाए हैं। महिलाओं की समस्‍याएं अभी भी बनी हुईं हैं। जब तक समाज का रवैया नहीं बदलेगा, महिलाओं की स्थिति संपूर्ण रूप से नहीं सुधरेगी। संगठन प्रवक्ता राजेश जैन महरौनी ने कहा यह देश व दुनिया में महिलाओं के अधिकारों की समानता को लेकर राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर मनाया जाता है। आज हम इसके 120वें वर्ष के आयोजन में शामिल हो रहे हैं। पहले इसकी तारीख कुछ और थी, लेकिन 8 मार्च को महिला दिवस की पहचान मिली है। शहरों में महिलाओं के सामाजिक योगदान को रेखांकित करने वाली रैलियों, पैदल मार्च, पेटिंग, रंगोली, ड्राइंग, आर्ट गैलरी आदि आयोजन किए जाते हैं। स्‍कूलों, कॉलेजों, संस्‍थानों व निकायों में भाषण व निबंध के आयोजन होते हैं। महिला दिवस के आयोजन का मुख्‍य मकसद महिलाओं की सुरक्षा एवं उनकी शिक्षा, स्‍वास्‍थ्‍य, करियर और अधिकारों के लिए अवसरों की तलाश है। संगठन की निर्देशक आरजू जैन तालबेहट ने कहा अंतर्राष्‍ट्रीय महिला दिवस को सबसे पहले वर्ष 1911 में आधिकारिक रूप से पहचान मिली थी। इसके बाद वर्ष 1975 में यूनाइटेड नेशन्‍स (संयुक्‍त राष्‍ट्र) ने अंतर्राष्‍ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च को मनाना शुरू किया। 1908 में न्‍यूयार्क में कपड़ा श्रमिकों ने हड़ताल कर दी थी। उनके समर्थन में महिलाएं खुलकर सामने आईं थीं। उन्‍हीं के सम्‍मान में 28 फरवरी 1909 के दिन अमेरिका में पहली बार सोशलिस्‍ट पार्टी के आग्रह पर महिला दिवस मनाया गया था।1910 में महिलाओं के ऑफिस की नेता कालरा जेटकीन ने जर्मनी में इंटरनेशनल वूमंस डे मनाए जाने की मांग उठाई थी। इस महिला का सुझाव था कि दुनिया के हर देश को एक दिन महिलाओं को आगे बढ़ाने के लिए मनाना चाहिये। मंत्री अशा जैन नावई ने कहा महिला दिवस की जब भी बारी आती है, हम केवल महिलाओं का गुणगान करके ही चुप हो जाते हैं लेकिन इस महत्‍पूर्ण दिन हमें कुछ सार्थक और गंभीर बातों पर ध्‍यान देना चाहिये। महिलाओं के लिए सबसे अहम बात है उनकी आर्थिक समझ और हालत सुधरे। घर खरीदना, बच्‍चों की शिक्षा जैसे बड़े खर्च से निपटना चुनौती है और यह तभी हल हो सकती है जब महिलाएं फाइनेंशियल प्‍लानिंग कर पाएंगी। महिलाओं को आज सम्माननीय, सुरक्षित जीवन देने के लिए इश्योर्ड रहना बहुत जरूरी है। वरिष्ठ उपाध्यक्ष बृजेश जैन शास्त्री ने कहा सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्र में महिलाओं ने जो उपलब्धियां हासिल की हैं, उनका सम्‍मान करने के लिए ही यह दिन निश्चित किया गया है, जो कि समाज के आए अच्‍छे बदलाव का प्रतीक है। आज का दिन एक अवसर है कि हम महिलाओं के प्रति प्रेम, प्रशंसा, सम्‍मान और अपनापन व्‍यक्‍त करें। मैं आप सभी से आग्रह करना चाहूंगा कि आप भी नारी की शक्ति को पहचानें, उनके महत्‍व को जानें और भविष्‍य में उन्‍हें सहयोग करते रहें।अंतराष्‍ट्रीय महिला दिवस हर साल बड़े पैमाने पर देश और दुनिया में मनाया जाता है। जहां तक हमारे देश भारत की बात है, भारत में दो प्रकार की महिलाएं हैं। पहली वें जो जीवन में हर प्रकार से सुखी व सुरक्षित हैं और दूसरी वे जिनका पूरा जीवन शुरू से अंत तक संघर्ष की एक अंतहीन कहानी है। पहले महिलाओं को कमजोर व सीमित माना जाता था लेकिन अब महिलाओं ने अपना महत्‍व साबित कर दिखाया है। लेकिन गरीब और बेसहारा महिलाएं आज भी जीवन को एक यातना की तरह भुगत रही हैं। निश्‍चित ही देश की सरकार को इस तबके की महिलाओं के लिए गंभीरता से ना केवल विचार करना चाहिये बल्कि उनके लिए कल्‍याणकारी योजनाएं लाना चाहिये और उनका जीवन सुधारना चाहिये। ऑडीटर ज्योति जैन करीटोरन ने कहा यदि कोई लड़की गरीब घर की है और केवल पैसों की कमी के चलते वह पढ़ाई नहीं कर सकती है तो समाज व सरकार को उसकी मदद के लिए आगे आना चाहिये। उसकी प्रतिभा का सम्‍मान किया जाना चाहिये। संघर्षरत महिलाओं के लिए अच्‍छा समय अभी भी दूर है। शादी के बाद घर की जिम्‍मेदारियों के बोझ तले वे दब जाती हैं। संतान के जन्‍म के बाद उनके दायित्‍व बढ़ते जाते हैं। ऐसे में आखिर वे समझौता करने लगती हैं और खुद को प्राथमिकता पर रखना भूल जाती हैं। यह हमारे समाज और सरकारों का सामूहिक दायित्‍व है कि हम समाज की उपेक्षित, पिछड़ी, बेसहारा, गरीब और अनाथ महिलाओं को आगे बढ़ाएं और उनका जीवन नर्क होने से बचाएं। मुख्य संयोजक जितेंद्र कुमार जैन तालबेहट ने कहा बच्चों में संस्कार भरने का काम मां के रूप में नारी द्वारा ही किया जाता है। यह तो हम सभी बचपन से सुनते चले आ रहे हैं कि बच्चों की प्रथम गुरु मां ही होती है। मां के व्यक्तित्व-कृतित्व का बच्चों पर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रकार का असर पड़ता है। इनका व्यक्तित्व विराट व अनुपम है।

 बेहतर संस्कार देकर बच्चे को समाज में उदाहरण बनाना, नारी ही कर सकती है। अत: नारी सम्माननीय है। महामंत्री अभिषेक जैन मोना ने कहा आजकल महिलाओं के साथ अभद्रता की पराकाष्ठा हो रही है। हम रोज ही अखबारों और न्यूज चैनलों में पढ़ते व देखते हैं, कि महिलाओं के साथ छेड़छाड़ की गई या सामूहिक बलात्कार किया गया। इसे नैतिक पतन ही कहा जाएगा। शायद ही कोई दिन जाता हो, जब महिलाओं के साथ की गई अभद्रता पर समाचार न हो। प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में दिन-पर-‍दिन अश्लीलता बढ़ती‍ जा रही है। इसका नवयुवकों के मन-मस्तिष्क पर बहुत ही खराब असर पड़ता है। नारी के सम्मान और उसकी अस्मिता की रक्षा के लिए इस पर विचार करना बेहद जरूरी है, साथ ही उसके सम्मान और अस्मिता की रक्षा करना भी जरूरी है। कोषाध्यक्ष सोनाली जैन ने कहा कतिपय आधुनिक महिलाओं का पहनावा भी शालीन नहीं हुआ करता है। इन वस्त्रों के कारण भी यौन-अपराध बढ़ते जा रहे हैं। इन महिलाओं का सोचना कुछ अलग ढंग का हुआ करता हैं। वे सोचती हैं कि हम आधुनिक हैं। यह विचार उचित नहीं कहा जा सकता है। अपराध होने यह बात उभरकर सामने नहीं आ पाती है कि उनके वस्त्रों के कारण भी यह अपराध प्रेरित हुआ है। देवी अहिल्याबाई होलकर, मदर टेरेसा आदि जैसी कुछ प्रसिद्ध महिलाओं ने अपने मन-वचन व कर्म से सारे जग-संसार में अपना नाम रोशन किया है। कस्तूरबा गांधी ने महात्मा गांधी का बायां हाथ बनकर उनके कंधे से कंधा मिलाकर देश को आजाद करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। संयोजक अभिषेक जैन पाह ने कहा इंदिरा गांधी ने अपने दृढ़-संकल्प के बल पर भारत व विश्व राजनीति को प्रभावित किया है। उन्हें लौह-महिला यूं ही नहीं कहा जाता है। इंदिरा गांधी ने पिता, पति व एक पुत्र के निधन के बावजूद हौसला नहीं खोया। दृढ़ चट्टान की तरह वे अपने कर्मक्षेत्र में कार्यरत रहीं। क्योंकि इंदिराजी राजनीति के साथ वाक्-चातुर्य में भी माहिर थीं। अंत में हम यही कहना ठीक रहेगा कि हम हर महिला का सम्मान करें। अवहेलना, भ्रूण हत्या और नारी की अहमियत न समझने के परिणाम स्वरूप महिलाओं की संख्या, पुरुषों के मुकाबले आधी भी नहीं बची है। इंसान को यह नहीं भूलना चाहिए, कि नारी द्वारा जन्म दिए जाने पर ही वह दुनिया में अस्तित्व बना पाया है और यहां तक पहुंचा है। रुचि जैन महरौनी ने कहा भारतीय संस्कृति में महिलाओं को देवी, दुर्गा व लक्ष्मी आदि का यथोचित सम्मान दिया गया है

 अत: उसे उचित सम्मान दिया ही जाना चाहिए। वर्तमान में जो हालात दिखाई देते हैं, उसमें नारी का हर जगह अपमान होता चला जा रहा है। उसे भोग की वस्तु समझकर आदमी अपने तरीके से इस्तेमालकर रहा है। यह बेहद चिंताजनक बात है। लेकिन हमारी संस्कृति को बनाए रखते हुए नारी का सम्मान कैसे किया जाए, इस पर विचार करना आवश्यक है। आकांक्षा जैन तालबेहट ने कहा मां अर्थात माता के रूप में नारी, धरती पर अपने सबसे पवित्रतम रूप में है। माता यानी जननी। मां को ईश्वर से भी बढ़कर माना गया है, क्योंकि ईश्वर की जन्मदात्री भी नारी ही रही है। किंतु बदलते समय के हिसाब से संतानों ने अपनी मां को महत्व देना कम कर दिया है। यह चिंताजनक पहलू है। सब धन-लिप्सा व अपने स्वार्थ में डूबते जा रहे हैं। परंतु जन्म देने वाली माता के रूप में नारी का सम्मान अनिवार्य रूप से होना चाहिए, जो वर्तमान में कम हो गया है, यह सवाल आजकल यक्षप्रश्न की तरह चहुंओर पांव पसारता जा रहा है। महेंद्र जैन बांसी ने कहा अगर आजकल की लड़कियों पर नजर डालें तो हम पाते हैं कि ये लड़कियां आजकल बहुत बाजी मार रही हैं। इन्हें हर क्षेत्र में हम आगे बढ़ते हुए देखा जा सकता है। विभिन्न परीक्षाओं की मेरिट लिस्ट में लड़कियां तेजी से आगे बढ़ रही हैं। किसी समय इन्हें कमजोर समझा जाता था, किंतु इन्होंने अपनी मेहनत और मेधा शक्ति के बल पर हर क्षेत्र में प्रवीणता अर्जित कर ली है। इनकी इस प्रतिभा का सम्मान किया जाना चाहिए। अमित जैन पारौल ने कहा नारी का सारा जीवन पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने में ही बीत जाता है। घर के कामकाज के साथ पढ़ाई-लिखाई की दोहरी जिम्मेदारी निभानी होती है, जबकि इस दौरान लड़कों को पढ़ाई-लिखाई के अलावा और कोई काम नहीं रहता है। इस नजरिए से देखा जाए, तो नारी सदैव पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर तो चलती ही है, बल्कि उनसे भी अधि‍क जिम्मेदारियों का निर्वहन भी करती हैं। नारी इस तरह से भी सम्माननीय है। प्रीति जैन ने कहा विवाह पश्चात तो महिलाओं पर और भी भारी जिम्मेदारि‍यां आ जाती है। संतान के जन्म के बाद तो उनकी जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है। घर-परिवार, चौके-चूल्हे में ही एक आम महिला का जीवन कब बीत जाता है, पता ही नहीं चलता। कई बार वे घर-परिवार की खातिर अपने अरमानों का भी गला घोंट देती हैं। उन्हें इतना समय भी नहीं मिल पाता है वे अपने लिए भी जिएं। परिवार के प्रति उनका यह त्याग उन्हें सम्मान का अधि‍कारी बनाता है। अंत में सभी ने महिला सशक्तिकरण हेतु महिला अधिकार के लिए लड़ने नारी का सम्मान एवं उनका सहयोग करने की शपथ ली।



सलाम खाकी न्यूज़ ललितपुर से पत्रकार इंद्रपाल सिंह की रिपोर्ट

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