महिला सशक्तिकरण की जद से बाहर है अशिक्षित महिलाएं ?
* प्रति वर्ष 8 मार्च को मनाया जाता है महिला दिवस
झिंझाना शामली उत्तर प्रदेश 7 मार्च 2020
पूरे भारत में 8 मार्च महिला सशक्तिकरण दिवस के रूप में मनाया जाता है । महिला सशक्तिकरण’ के बारे में जानने से पहले हमें ये समझ लेना चाहिये कि हम ‘सशक्तिकरण’ से क्या समझते है। ‘सशक्तिकरण’ से तात्पर्य किसी व्यक्ति की उस क्षमता से है जिससे उसमें ये योग्यता आ जाती है जिसमें वो अपने जीवन से जुड़े सभी निर्णय स्वयं ले सके। महिला सशक्तिकरण में भी हम उसी क्षमता की बात कर रहे है जहाँ महिलाएँ परिवार और समाज के सभी बंधनों से मुक्त होकर अपने निर्णयों की निर्माता खुद हो । मगर आज भी काफी महिलाएं अपने आप को असहाय महसूस कर रही है जिन के उत्थान की आवश्यकता है । कहीं इसका कारण शिक्षा का अभाव तो नहीं है ।
सलाम खाकी न्यूज ओन लाईन एवमन मासिक पत्रिका दिल्ली की ओर से आप सभी को महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
महिला सशक्तिकरण के उच्च लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये इसे हर एक परिवार में बचपन से प्रचारित व प्रसारित करना चाहिये । ये जरुरी है कि महिलाएँ शारीरिक, मानसिक और सामाजिक रुप से मजबूत हो । चूंकि एक बेहतर शिक्षा की शुरुआत बचपन से घर पर हो सकती है , महिलाओं के उत्थान के लिये एक स्वस्थ परिवार की जरुरत है जो राष्ट्र के सर्वांगीण विकास के लिये आवश्यक है। आज भी कई पिछड़े क्षेत्रों में माता-पिता की अशिक्षा, असुरक्षा और गरीबी की वजह से कम उम्र में विवाह और बच्चे पैदा करने का चलन है । महिलाओं को मजबूत बनाने के लिये महिलाओं के खिलाफ होने वाले दुर्व्यवहार, लैंगिक भेदभाव, सामाजिक अलगाव तथा हिंसा आदि को रोकने के लिये सरकार कई सारे कदम उठा रही है । इस संबंध में सामाजिक व शिक्षा से जुडी कुछ महिलाओं ने क्रियाएं प्रतिक्रियाएं व्यक्त की गई है ।
कस्बे में स्थित सेंट आरसी पब्लिक स्कूल की प्रधानाचार्या आंचल बिंदल कहती है कि जब महिलाओं को पुरुष के समान मानने की जरूरत क्या है । क्योंकि महिलाएं और पुरुष खुद एक दूसरे के पूरक होते हैं ।शिक्षा के अभाव के कारण ग्रामीण आंचल की महिलाएं अपनी सोच को विकसित नहीं कर सकती । वें स्वयं को समझ नहीं पाती । कुछ तो अपनी पारिवारिक समस्याओंं और निर्धनता की वजह से भी घर के कामकाज तक ही सीमित रह जाती हैं । इस समाज में महिला और पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं । दोनोंं ही एक दूसरे के बिना अधूरे होते हैं । माता पार्वती और भगवान शिव , भगवान विष्णु व माता लक्ष्मी आदि कई ऐसे उदाहरण है ।
सशक्तिकरण का मतलब यही है कि महिलाएं अपने आप में इतनी मजबूत हो कि वेे स्वयं को असहाय और अबला समझे । इस सशक्तिकरण में कई बुराई अभी है जैसे दहेज प्रथा भ्रूण हत्या बलात्कार और भी बहुत सारी बुराइयां हैं जिन्हें युद्ध स्तर पर दूर के रहने की जरूरत है ।
कस्बे की समाजसेविका अंजली गोयल ( पुत्र वधू राकेश गोयल पूर्व चेयरमैन ) महिला सशक्तिकरण के बारे में कहती हैं कि इस सरकार ने तो इस संबंध में काफी अच्छे प्रयास किए हैं । मगर हमारे देश में लगभग 20% से अधिक में महिलाएं आज भी सशक्तिकरण की जद से बाहर हैं जो अशिक्षित है। आज समाज के हर व्यक्ति की जिम्मेदारी बनती है कि शिक्षा हर परिवार में हर व्यक्ति चाहे वह पुरुष हो या महिला सबके लिए जरूरी है । और इसके अलावा आज सबसे बड़ी जरूरत उन सामाजिक बुराइयों को दूर करने की है जो महिला उत्थान के बीच में आड़े आ रही है । और वह है दहेज उत्पीड़न , भ्रूण हत्या , शिक्षा और महिलाओं का उत्पीड़न की समस्या । हालांकि सरकार ने बहुत कदम महिला सशक्तिकरण के लिए उठाए हैं , मगर आज भी काफी महिलाएं कहीं ना कहीं पीड़ित हैं । और भ्रूण हत्या रोकने के बारे में प्रत्येक सामाजिक कार्यकर्ता की जिम्मेदारी है।
कस्बे के सेंटआरसी स्कूल की व्यवस्थापिका सुमन सरोहा कहती हैं कि पहले समय में अधिकांश महिलाएं अशिक्षित होती थी । उन्हें अपने अधिकारों की जानकारी नहीं होती थी । और वेें केवल और केवल पुरुषों के हाथ की कठपुतलियां बनकर रहती थी । आज समाज में जैसे-जैसे महिलाओं की शिक्षा बढ़ी है उन्हें अपने अधिकारों की जानकारी भी हुई है । और वेें स्वयं के ऊपर भी आश्रित हुई है । और उन्होंने स्वीकार किया कि शिक्षा के अभाव में आज भी काफी महिलाएं अपने रसोई चुल्हे तक ही सिमट कर रह गई है ।
कस्बे के प्राथमिक विद्यालय से रिटायर्ड अध्यापिका श्यामलता मित्तल कहती हैं कि महिला उत्थान के मामले में दहेज हत्या , यौन हिंसाा , बलात्कार , भ्रूण हत्या और महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा , वेश्यावृत्ति , मानव तस्करी आदि ऐसे काफी मामले हैं जिनमें अभी तक कमी नहीं आई है । खबरों में इस तरह के मामले आए दिन सुनने को मिलते रहते हैं । सबसे पहले बालिकाओं को शिक्षा देना बहुत ही जरूरी है । और इस शिक्षा के लिए अभिभावकों की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है । अब जिस तरह से सरकार बेटी बचाओ , बेटी पढ़ाओ के नारे के साथ भी काम कर रही है और भी कई तरह के योजनाएं बालिकाओं के लिए चलाई है । उनमें बालिकाओं की अनिवार्य शिक्षा के प्रति अभिभावकों पर सरकार का शिकंजा नहीं है हम पूर्णण रूप से महिला महिला शिक्षित हों स्वावलंबी हो ।
महिला सशक्तिकरण के उच्च लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये इसे हर एक परिवार में बचपन से प्रचारित व प्रसारितकरना चाहिये। ये जरुरी है कि महिलाएँ शारीरिक, मानसिक और सामाजिक रुप से मजबूत हो। चूंकि एक बेहतर शिक्षा की शुरुआत बचपन से घर पर हो सकती है, महिलाओं के उत्थान के लिये एक स्वस्थ परिवार की जरुरत है जो राष्ट्र के सर्वांगीण विकास के लिये आवश्यक है। आज भी कई पिछड़े क्षेत्रों में माता-पिता की अशिक्षा, असुरक्षा और गरीबी की वजह से कम उम्र में विवाह और बच्चे पैदा करने का चलन है। महिलाओं को मजबूत बनाने के लिये महिलाओं के खिलाफ होने वाले दुर्व्यवहार, लैंगिक भेदभाव, सामाजिक अलगाव तथा हिंसा आदि को रोकने के लिये सरकार कई सारे कदम उठा रही है।
महिलाओं की समस्याओं का उचित समाधान करने के लिये महिला आरक्षण बिल-108वाँ संविधान संशोधन का पास होना बहुत जरुरी है ये संसद में महिलाओं की 33% हिस्सेदारी को सुनिश्चित करता है। दूसरे क्षेत्रों में भी महिलाओं को सक्रिय रुप से भागीदार बनाने के लिये कुछ प्रतिशत सीटों को आरक्षित किया गया है।
सरकार को महिलाओं के वास्तविक विकास के लिये पिछड़े ग्रामीण क्षेत्रों में जाना होगा और वहाँ की महिलाओं को सरकार की तरफ से मिलने वाली सुविधाओं और उनके अधिकारों से अवगत कराना होगा जिससे उनका भविष्य बेहतर हो सके। महिला सशक्तिकरण के सपने को सच करने के लिये लड़िकयों के महत्व और उनकी शिक्षा को प्रचारित करने की जरुरत है
सलाम खाकी न्यूज मुख्यालय दिल्ली से समाचार सम्पादक सलेक चन्द वर्मा की रिपोर्ट
सलाम खाकी न्यूज मुख्यालय दिल्ली से समाचार सम्पादक सलेक चन्द वर्मा की रिपोर्ट
No comments:
Post a Comment