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“हंसते-चलते मौत LIVE” — तीस हजारी कोर्ट में ड्यूटी पर इंस्पेक्टर की मौत, मगर सवाल अब भी ज़िंदा हैं

📍स्थान: दिल्ली

📅 तिथि: 10 अक्टूबर 2025
✍️ विशेष रिपोर्ट: ज़मीर आलम, “सलाम खाकी” — पुलिस विभाग को समर्पित राष्ट्रीय पत्रिका


दिल्ली के तीस हजारी कोर्ट से आई खबर ने पूरे पुलिस महकमे को हिला दिया —
पुलिस इंस्पेक्टर राजेश कुमार की अचानक दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई।
वो कोर्ट परिसर में ड्यूटी पर मौजूद थे, सहकर्मियों से हंसते-बोलते हुए अचानक ज़मीन पर गिर पड़े।
जब तक उन्हें अस्पताल ले जाया गया, डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया।

यह एक ऐसी “हंसते-चलते मौत” थी, जो पल भर में ड्यूटी और ज़िंदगी के बीच की लकीर मिटा गई।


💔 हंसते-बोलते पल में खत्म हुई ज़िंदगी

चश्मदीद बताते हैं कि इंस्पेक्टर राजेश कुमार सुबह से कोर्ट में तैनात थे।
वो पूरी तरह सामान्य दिख रहे थे — किसी को नहीं लगा कि कुछ गड़बड़ है।
लेकिन अचानक, ड्यूटी के दौरान उनकी तबियत बिगड़ी और सबकुछ कुछ ही मिनटों में ख़त्म हो गया।

सहकर्मी स्तब्ध रह गए। किसी को विश्वास नहीं हुआ कि जो इंस्पेक्टर कुछ देर पहले हंस रहा था, अब हमेशा के लिए खामोश हो गया है।


🚨 पुलिस में हार्टअटैक — बढ़ती एक नई महामारी

यह कोई पहला मामला नहीं है। पिछले कुछ वर्षों में देशभर में पुलिसकर्मियों के बीच हार्टअटैक और ब्रेन स्ट्रोक के मामलों में तेज़ी से वृद्धि हुई है।
लंबी ड्यूटी, तनाव, नींद की कमी और अनियमित खानपान ने पुलिस जीवन को साइलेंट स्ट्रेस मशीन बना दिया है।

“तनाव में जीती पुलिस, और फिर भी सबसे पहले मैदान में उतरने वाली फोर्स — यही है पुलिस की हकीकत।”
— एक वरिष्ठ अधिकारी (नाम न छापने की शर्त पर)

राजेश कुमार की मौत कोई “आकस्मिक घटना” नहीं, बल्कि एक चलती हुई चेतावनी है।
वो चेतावनी जो कहती है — पुलिस कर्मियों का मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य अब “विकल्प” नहीं, बल्कि “जरूरत” है।


🧠 ड्यूटी पर मौत — लेकिन चर्चा में नहीं

हर बार ऐसी खबर आती है, कुछ दिन शोक होता है, फिर सब भूल जाते हैं।
न कोई गंभीर समीक्षा, न कोई ठोस नीति परिवर्तन।
“ड्यूटी पर मौत” अब इतनी आम हो चुकी है कि वो न्यूज़ तो है, लेकिन मुद्दा नहीं।

पुलिसकर्मी जो दूसरों की सुरक्षा के लिए अपनी जान जोखिम में डालते हैं, उनके अपने स्वास्थ्य और सुरक्षा पर शायद ही कभी गंभीर चर्चा होती है।

“एक सिपाही या इंस्पेक्टर की मौत अब केवल एक लाइन की खबर बनकर रह जाती है — लेकिन उसके पीछे की कहानी कोई नहीं सुनता।”
— ज़मीर आलम, पत्रकार


🕯️ राजेश कुमार — एक सिपाही, एक कहानी

राजेश कुमार, दिल्ली पुलिस के एक अनुभवी अधिकारी थे।
कई सालों से सेवा में थे, सैकड़ों केसों की जांच की, दर्जनों अभियुक्तों को सलाखों तक पहुंचाया।
लेकिन आज वो खुद एक अदृश्य अपराधी — तनाव के शिकार हो गए।

उनकी मौत ने एक बड़ा सवाल छोड़ा है —
क्या पुलिस विभाग अपने कर्मियों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को लेकर उतना गंभीर है जितना वो कानून-व्यवस्था के प्रति रहता है?


⚖️ ज़रूरत है सुधार की, नहीं तो “खाकी” थक जाएगी

देशभर में हजारों पुलिसकर्मी दिन-रात ड्यूटी पर तैनात हैं।
त्योहारों में, रैलियों में, वीआईपी ड्यूटी में, ट्रैफिक में, कोर्ट में — हर जगह।
लेकिन क्या कभी किसी ने पूछा कि उनकी नींद कब पूरी होती है?
उनका तनाव कौन सुनता है?
उनकी थकान कौन समझता है?

“सलाम खाकी” मानता है कि अब वक्त है कि पुलिसकर्मियों के लिए स्वास्थ्य जांच, काउंसलिंग, और फिटनेस वीक जैसी पहल अनिवार्य की जाए।
क्योंकि अगर “खाकी” थक जाएगी — तो सुरक्षा की नींव हिल जाएगी।


🙏 अंतिम सलाम

इंस्पेक्टर राजेश कुमार को “सलाम खाकी” की ओर से भावभीनी श्रद्धांजलि।
उनकी मौत सिर्फ़ एक अधिकारी का जाना नहीं —
बल्कि उस व्यवस्था की खामोश पुकार है, जो कहती है —
“अब पुलिस का भी दिल धड़कना चाहिए, सिर्फ़ दूसरों के लिए नहीं, अपने लिए भी।”


🖋 विशेष रिपोर्ट: ज़मीर आलम
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“सलाम खाकी” — पुलिस विभाग को समर्पित देश की एकमात्र राष्ट्रीय पत्रिका
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