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खाकी का कंधा और मानवता की मिसाल – एक कांवड़िए के लिए इंस्पेक्टर बना फरिश्ता

पत्रकार: तसलीम अहमद, विशेष संवाददाता, 'सलाम खाकी' राष्ट्रीय समाचार पत्रिका, उत्तराखण्ड

श्रावण मास का पावन महीना, शिवभक्तों का जनसैलाब और उनके सेवा में पूरी तन्मयता से जुटे हमारे प्रहरी – उत्तराखण्ड की हरिद्वार पुलिस। यह केवल व्यवस्था संभालने की बात नहीं है, यह संवेदना, करुणा और "मानव धर्म" काब्लॉग शीर्षक: खाकी का कंधा और मानवता की मिसाल – एक कांवड़िए के लिए इंस्पेक्टर बना फरिश्ता

लेखक: तसलीम अहमद, विशेष संवाददाता, 'सलाम खाकी' राष्ट्रीय समाचार पत्रिका, उत्तराखण्ड

श्रावण मास का पावन महीना, शिवभक्तों का जनसैलाब और उनके सेवा में पूरी तन्मयता से जुटे हमारे प्रहरी – उत्तराखण्ड की हरिद्वार पुलिस। यह केवल व्यवस्था संभालने की बात नहीं है, यह संवेदना, करुणा और "मानव धर्म" का अद्भुत उदाहरण है। और इस उदाहरण को जीवंत किया धनौरी चौकी प्रभारी पुष्कर सिंह चौहान ने – जब उन्होंने एक लाचार कांवड़िए की पीड़ा को अपने कंधे पर उठाया।

इंसानियत के कांधे पर कांवड़

पिरान कलियर की भीड़ में एक कांवड़िया अपने साथियों से बिछड़ गया। कारण – उसका पैर मुड़ गया था, दर्द असहनीय था और चलना भी दूभर। शायद वह वहीं रुक जाता, शायद मन में मायूसी घर कर जाती… लेकिन तभी वहां पहुंचे चौकी इंचार्ज पुष्कर सिंह चौहान।

ना कोई औपचारिकता, ना कोई आदेश–निर्देश। उन्होंने सबसे पहले उस कांवड़िए के पैर में खुद अपने हाथों से मरहम लगाया, पट्टी की, और फिर – उसकी कांवड़ को खुद अपने कंधे पर उठाया। जी हाँ, एक पुलिस अधिकारी, श्रद्धा और सेवा भाव से लबरेज़ होकर एक आम शिवभक्त की सेवा में लग गया।

कदम-कदम साथ चला इंस्पेक्टर

इतना ही नहीं, चौहान साहब ने न केवल उसे सहारा दिया बल्कि उसके साथियों को ढूंढकर उसे उनके सुपुर्द भी किया, ताकि वह अकेले न पड़े। इस दौरान बाकी कांवड़िए यह दृश्य देख सन्न रह गए – खाकी वर्दी की यह संवेदनशील छवि किसी को भी भावुक कर सकती थी।

कांवड़ यात्रा के दौरान पुलिस की भूमिका केवल यातायात और सुरक्षा तक सीमित नहीं रहती – वे मार्गदर्शक भी हैं, मददगार भी और संकट में साथी भी।

"सलाम खाकी" – जब वर्दी बनी विश्वास

आज जब अकसर वर्दी पर सवाल उठते हैं, ऐसे दृश्य भरोसा लौटाते हैं। पुष्कर सिंह चौहान जैसे अधिकारी यह जताते हैं कि खाकी केवल शक्ति नहीं, संवेदना भी है।

उत्तराखण्ड पुलिस का यह मानवीय चेहरा संपूर्ण समाज को एक संदेश देता है – जहाँ सेवा भाव है, वहीं सच्ची भक्ति है।


संक्षेप में:
कांवड़ यात्रा में लाखों श्रद्धालु शिवभक्ति के रंग में डूबे होते हैं, लेकिन जब किसी का कंधा थक जाए और वर्दीदार फरिश्ता उसकी मदद करे – तो समझिए, वह सिर्फ एक घटना नहीं, एक मिसाल बन जाती है।

जय भोलेनाथ!
जय खाकी!


📨 रिपोर्ट: तसलीम अहमद
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