पवित्र नवरात्रों में मां भगवती तथा अन्य देवी-देवताओं की तस्वीरों ( सांंझी ) को अपने हाथों से निर्मित कर अपनी हस्तकला से प्रभावित किया एक परिवार ने
झिंझाना ( शामली ) 1 अक्टूबर 2019
नवरात्रों के अवसर पर देवी देवताओं की प्रतिमाओं को मिट्टी पानी की सहायता से अपने हाथों से तैयार करना या फिर दशहरा पर रावण सहित राम लक्ष्मण सीता की प्रतिमाओं को पृथ्वी पर अंकित करना , इसके अलावा करवा चौथ , अहोई अष्टमी वगैरा आदि त्योहारों पर अपने हाथों से प्रतिमाओं को अपने हाथो से चित्रित करना एक प्राचीन परम्परा रही है । समय-समय की ये परंपराएं कलाकारी के रूप मे होती थी । जो करीब एक दशक पूर्व से लुप्त होती दिखाई दे रही है ।
नवरात्रों के लिए मिट्टी पानी के मिश्रण से हाथ से बनाई गई नक्काश कारी से बनी सांझी को श्राद्धों मे ही मन चाहे रंगो से तैयार कर के अमावस्या के दिन लगाया जाता है और पूरा नवरात्रों तक पूजा आरती आदि अनुष्ठान पूरा किए जाते हैं । दुर्गा अष्टमी या नवमी के दिन पूजा अर्चना के बाद सांझी को गंगा या यमुना या दूसरे चलते जल में प्रवाहित कर दिया जाता है । यह चित्रकला झिंझाना के मौहल्ला तलाही -२ स्थित चन्दनपुरी मे रहने वाले सुरेश सैनी की बेटी सविता सैनी के हाथों बनायी गयी सांझी को देखने से पता चला कि यह हस्त चित्रकला आज भी जिंदा है इस सांझी के बनाने में सविता की भाभी सीमा सैनी तथा दुसरी भाभी पूजा देवी सैनी का भी बडा सहयोग है ।देखने वाला हर कोई अतीत मे डूबते हुए कहता है कि अब कौन बनाता है ये सब ।
इस हस्त चित्रकला के लुप्त होने का कारण , न तो आज किसी के पास समय है और ना ही कोई बनाना जानता है । दूसरे गारे और गोबर में कोई अपने हाथों को भी डालना नहीं चाहता । और दूसरे शब्दों में आजकल का ट्रेंड बाजार से रेडीमेड सामान खरीदना बन चुका है । सविता सैनी बताती है कि वह कनागत में सांझी , दशहरे पर आटे व गोबर से रावण का पुतला , अहोई अष्टमी के दिन अपने घर की दी
वार पर रंगों से अहोई माता का चित्र स्वयं अपने हाथो से बनाती हैं और इसके बाद गोवर्धन पूजा आदि के समय पर भी गोवर्धन पूजा के लिए गोवर्धन का चित्र गोबर से तैयार करती हैं।
नवरात्रों के अवसर पर देवी देवताओं की प्रतिमाओं को मिट्टी पानी की सहायता से अपने हाथों से तैयार करना या फिर दशहरा पर रावण सहित राम लक्ष्मण सीता की प्रतिमाओं को पृथ्वी पर अंकित करना , इसके अलावा करवा चौथ , अहोई अष्टमी वगैरा आदि त्योहारों पर अपने हाथों से प्रतिमाओं को अपने हाथो से चित्रित करना एक प्राचीन परम्परा रही है । समय-समय की ये परंपराएं कलाकारी के रूप मे होती थी । जो करीब एक दशक पूर्व से लुप्त होती दिखाई दे रही है ।
करीब एक दशक पूर्व तक अपने हाथों से बनाई जाती थी सांझी
श्राद्धों के अंत में और नवरात्रों के लिए मां शेरावाली के दरबार की सभी प्रतिमाओं के अलावा भी अन्य देवी देवताओं की प्रतिमाओं को मिट्टी पानी यानि गारे से बनाकर उन्हें अपने हाथों से तैयार करना और उनमें रंग भर कर एक वास्तविक रूप देने की परंपरा सदियों - सदियों से चली आ रही थी । और इस परंपरा और चित्रकला को घर की महिलाएं अपने हाथों से तैयार करती थी । जिन्हें सांझी के नाम से पुकारा जाता है , हाथो से बनाने की यह परम्परा जो अब प्राय लुप्त होती जा रही है और कहीं कहीं देखने को मिलती है ।भाव और भक्ति की आधार होती थी हस्त चित्रकला
ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी जिंदा है हस्त चित्रकला
न शोक , न संसाधन , न समय , सिखाने वाला भी नही - बाजार जिन्दाबाद
इस हस्त चित्रकला के लुप्त होने का कारण , न तो आज किसी के पास समय है और ना ही कोई बनाना जानता है । दूसरे गारे और गोबर में कोई अपने हाथों को भी डालना नहीं चाहता । और दूसरे शब्दों में आजकल का ट्रेंड बाजार से रेडीमेड सामान खरीदना बन चुका है । सविता सैनी बताती है कि वह कनागत में सांझी , दशहरे पर आटे व गोबर से रावण का पुतला , अहोई अष्टमी के दिन अपने घर की दी
वार पर रंगों से अहोई माता का चित्र स्वयं अपने हाथो से बनाती हैं और इसके बाद गोवर्धन पूजा आदि के समय पर भी गोवर्धन पूजा के लिए गोवर्धन का चित्र गोबर से तैयार करती हैं।
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