Advertisement

विजयदशमी पर्व को सार्थकता के साथ मनाते हुए अपने अंदर का भी रावण भी‌ जलाये , असत्य पर करें सत्य की जीत , जीवन मे हो सकता है शानदार और सुनहरा परिवर्तन - सलाम‌ खाकी

विजयदशमी के मौके पर इंसान भी अपने अंदर की कम से कम एक बुराई को छोड़ने का प्रण ले तो इस त्यौहार की सार्थकता और भी बढ़ जाती है । दूसरी ओर इंसान का जीवन सुनहरे भविष्य की ओर बढ़ जाता है


        वैसे तो हर त्यौहार की अपनी परंपरा रही हैं और साथ ही त्योहार का एक कारण होता है । विजयदशमी का यह त्यौहार भगवान श्री राम चन्द्र जी जो सत्य के प्रतीक होने की वजह से पुरुषोत्तम कहलाये जाते हैं । 

             विजयदशमी का त्यौहार असत्य पर सत्य की जीत का प्रतीक है क्योंकि रावण को असत्य का प्रतीक माना जाता हैं । हालांकि राजा रावण ब्राह्मण होने के नाते उच्च कोटि के विद्वान , बुद्धिमान और अपनी तपस्या के बल पर भगवान शिव को भी अपने वश में करने वाले एक शूरवीर थे ।‌ मगर उनके अहंकार ने उन्हे राक्षस प्रवृति का बना दिया था । यही से राक्षस कुल का बोलबाला था ।‌   

 इसी पाप का अन्त करने के लिये विष्णु भगवान ने भगवान श्री राम के रूप अवतार लेकर इंसान जाति को मानवता  और पुरूषों के लिये श्रेष्ठता का सबक सिखाया ।‌ रावण जैसे राक्षस कुल का सफाया करके रामराज्य स्थापित किया इसीलिए यह विजयदशमी का त्यौहार मनाया जाता है । 

             दर - असल इंसान को बुराईयों का पुतला कहा गया है और सभी योनियों मे इंसान से बढकर कोई दुसरी ऐसी बुद्धिमान योनि है भी नही ।‌ क्योंकि बुद्धि के द्वारा हर इंसान अपना लोक परलोक सुधर सकता है ऐसा संत लोग कहते हैं । आज के समय मे इंसान स्वार्थी , लालची और जरा सी उपाधि मिलते ही अहंकारी हो चला है । 

‌            आज का इंसान अपने धनबल , बाहुबल बल , आदि किसी भी बल के बढ़ते ही अहंकार में आ जाता है । और यदि वह अपने किसी भी बल की ताकत का अंदाजा रावण से करें तो इंसान को आसानी से सब कुछ समझ में आ जाएगा क्योंकि पैसे की बात करें तो पूरी लंका सोने की थी । बाहुबल की बात करें तो उससे बडे कुल ( परिवार ) की ताकत किसी के पास नही ।  
यदि हम रावण जैसे विद्वान से शिक्षा ले सकें तो हमें पता होना चाहिए कि राजा रावण ने श्री रामचन्द्र जी के  सन्यासियों वाले रूप को श्री हरि के रूप मे पहिचान कर अपनी और अपनी पूरी जाति का कल्याण करने के लिए श्री राम की पत्नी माता सीता को चुराया था । और उनसे बैर बढाया था । इसी बहाने रावण ने अपना व पूरी राक्षस जाति का कल्याण कर लिया था ।‌

        रावण ने असत्य का मार्ग पकड़ लिया था श्रीराम ने सत्यता के आधार पर उस पर विजय प्राप्त की थी ।‌ इसीलिए उस दिन से विजयदशमी का पर्व मनाया जाता है।




              इसलिए हमें भी चाहिए कि आज के विजयदशमी के दिन हम अपने अंदर की कम से कम एक बुराई को छोड़ने का संकल्प लें ताकि इस पर्व की सार्थकता बढ़ सके ।


सलाम खाकी से प्रधान संपादक जमीर आलम के साथ समाचार संपादक सलेक चन्द वर्मा की रिपोर्ट

No comments:

Post a Comment