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पिता के हत्यारों को पकड़ने में पुलिस ने नहीं किया सहयोग, तो बेटा बन गया आईपीएस अफसर

 


आज जिस व्यक्तित्व के विषय में आपको बताने जा रहे हैं, उसकी कहानी किसी फिल्म से कम नहीं है। पुरानी फिल्मी में अक्सर ऐसी कहानी रहती थी कि पिता की हत्या के बाद पुलिस द्वारा लापरवाही बरती जाती थी तो बेटा बड़ा होकर अफसर बनता था और उन पुलिसकर्मियों को सबक सिखाता था। कुछ ही कहानी यूपीएससी की परीक्षा में 117वीं रैंक हासिल करने वाले सूरज कुमार राय की। आखिर कैसे एक बेटे ने अपने पिता की हत्या के बाद अफसर बनने की ठानता है।


उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के मुफ्तीगंज क्षेत्र के पेसारा गांव के रहने वाले सूरज कुमार राय। उनका सपना इंजीनियर बनने का था। वह बचपन से हीं साइंस में बहुत दिलचस्पी लेते थे। सूरज शुरुआत के दिनों से हीं पढ़ाई में बहुत अच्छे थे। 10 वीं के बाद आगे की पढ़ाई के लिए सूरज ने साइंस का चयन किया। 12 वीं तक की पढ़ाई पूरी होने के बाद इलाहाबाद के मोतीलाल नेहरु इंजीनियरिंग कॉलेज में इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए नामांकन करवाया। लेकिन कहते हैं ना कि जब किस्मत हमारा साथ नहीं देता तो हमारा हर प्रयास कम पड़ जाता है।



उन्होंने 2009 में इलाहाबाद में मोतीलाल नेहरू इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला लिया था, तभी सूरज के पिता की हत्या कर दी गई थी। ये मामला पुलिस तक पहुंचा, लेकिन पुलिस से अपेक्षित सहयोग नहीं मिला। यह बडी विडंबना है कि देश को हमारे देश भारत को आजाद हुए 73 साल हो चुका है परंतु अब भी हमारे देश की कानूनी व्यवस्था इतनी अच्छी नहीं हो पाई है कि हर किसी को इंसाफ मिल सके। कानून व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य जनमानस को न्याय देना है। सरकार ने ऐसी बहुत सारी कानूनी व्यवस्था की है जिससे देश के हर नागरिक को इंसाफ मिल सके, परंतु अभी भी ऐसा हो नहीं पा रहा है।



पिता की हत्या और पुलिस के असहयोग ने सूरज की पूरी जिंदगी हीं बदल दी। इस घटना के 2 वर्ष बाद भी सूरज को अपने पिता के लिये इन्साफ नहीं मिला। सूरज ने बताया कि जब वो अपने पिता को इंसाफ दिला रहे थे तो, उन्हें बहुत सारी मुसीबतों का सामना करना पड़ा। इस बारे में बताते हुए सूरज कहते हैं कि उन दिनों जब वो पुलिस स्टेशन जाते थे तो वहां उन्हें घंटो प्रतीक्षा करवाया जाता था। ऐसी लापरवाही को देखते हुए सूरज ने सिस्टम में सुधार लाने के बारे में सोचा। इसके लिए उन्होंने खुद ही IPS बनाने की ठानी। जिसके लिए सूरज ने बचपन के सपने को छोङकर ग्रेजुएशन की पढ़ाई करने के बाद UPSC की तैयारी में लग गए।

मन में असफर बनने की ठानने वाले सूरज ने साल 2013 में इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद सिविल सर्विसेज की तैयारी करने में जुट गए। उन्होंने इसके लिए साल 2014 में एक कोचिंग में एडमिशन लिया। वे 2015 में पहली बार सिविल सर्विसेज का इम्तिहान दिया लेकिन प्रीलिम्स तक क्लियर नहीं कर पाए। इसके बाद 2016 में एक बार फिर इम्तिहान दिया और इस बार प्रीलिम्स तो क्लियर हुआ लेकिन मेंस में सलेक्शन नहीं हो पाया। इन नतीजों ने सूरज को कमजोर नहीं बल्कि अलगे अटैम्पट के लिए और भी प्रत्साहित किया। 2017 में एक बार फिर से सूरज ने सिविल सर्विसेज का इम्तिहान दिया और इस बार प्रीलिम्स भी क्लियर हुआ और मेंस भी और सूरज की रैंक 117 वीं रही।



आईपीएस बनने से पहले सूरज का चयन सहायक कमांडेंट के पद पर हुआ था, परन्तु कार्यभार ग्रहण करने से पहले ही आईपीएस में चयन हो गया। इनके भाई सौरभ राय मुम्बई में ज्वाइंट कमिश्नर आयकर के पद पर कार्यरत हैं। बड़े भाई आनंद प्रकाश राय दीवानी न्यायालय में वकालत करते हैं। सूरज इस चयन के पीछे संयुक्त परिवार के सदस्यों के साथ स्व. पिता को प्रेरणा मानते हैं। वह कहते हैं कि अगर पिता होते तो कितना खुश होते।



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