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अधूरा प्रेमकभी कभी सोचती हूँ, क्या सोचकर या क्यों करता है एक विवाहित पुरुष दूसरी स्त्री से प्रेम.......?मौलिक व अप्रकाशितअरुणा राजपूत "राज"शिक्षिका (हापुड़)उ०प्र०

अधूरा प्रेम

कभी कभी सोचती हूँ, क्या सोचकर या क्यों करता है एक विवाहित पुरुष दूसरी स्त्री से प्रेम.......?
सिर्फ दैहिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए या कुछ ऐसा पा लेने के लिए जिसकी पूर्ति वह अपनी पत्नी से नही कर पाता है या सच में उसे प्रेम हो जाता है उस दूसरी स्त्री से.....?
ऐसी कौन सी कमी होती है उसकी पत्नी में जो उसे परस्त्री तक जाने को विवश करती है और वो परस्त्री जिससे वो जुड़ता है, क्या वह कर पाती है उसकी प्रत्येक आकांक्षा की पूर्ति?
क्यों नही सोचता वो परस्त्री गमन से पूर्व कि क्या वो सम्पूर्ण है, अपनी पत्नी के लिए ?
क्या उसने पूछा है कभी अपनी पत्नी से कि तुम्हें मुझमें क्या कमी महसूस होती है, एक पति के रुप में तुम्हें मुझसे क्या उम्मीदें हैं?
जहाँ तक मैं समझती हूँ ऐसा उस पुरुष ने कभी ना किया होगा,
क्योंकि अगर कभी भी उसने ऐसा किया होता तो वो कभी किसी दूसरी स्त्री से जुड़ता ही नही.....
और ऐसे पुरुष से अगर यह पूछा जाएँ कि उनकी पत्नी भी तो बना सकती है किसी दूसरे पुरुष से सम्बन्ध, उसे भी तो हो सकता है  दूसरे पुरुष से प्रेम??
तब उनका यह जबाब बहुत हास्यापद लगता है "वो ऐसा कभी नहीं करेगी|" कितना विश्वास होता है उसे अपनी पत्नी पर, कितनी अच्छी तरह जानता है वह अपनी पत्नी को और उसकी सीमाओं को.....
पर स्वयं, वाह रे पुरुष.....
और ऐसे पुरुष क्या निभा पाते है दूसरी स्त्री से अपना पूर्ण रिश्ता?
क्या दे पाते है अपना सर्वस्व....?
कैसे कर पाएगा वह एक पुरुष दो स्त्रियों से न्याय, जब वह स्वयं ही बटँ जाता है दो हिस्सों में....
और उसकी ईमानदारी दोनों में से किसी भी स्त्री के हिस्से में नही आती|
जिस आकांक्षा से दूसरी स्त्री के पास जाता है वह...क्या उस स्त्री की सारी आकंक्षाएँ पूरी कर पाता है  वो?
क्या वो दूसरी स्त्री उसे और उसके सम्पूर्ण प्रेम को प्राप्त कर लेती है? कितनी सीमाएँ अनचाहे तय हो जाती है उस स्त्री के लिए? उसका जीवन भी तो भर जाता होगा- दर्द, छ्रटपटाहट और अपूर्णता से या नही ?
और मान लो कि अगर उसे दूसरी स्त्री से प्रेम हो भी गया तो क्या त्याग सकता है वो उसके लिए समाज के सारे नियमों को ताक पर रखकर अपना परिवार और.....
अगर नहीं तो कैसा प्रेम जहाँ उलझा लेता है वह एक और जिन्दगी अपने साथ?
और वह औरत , उस पुरुष की पत्नी, जो अथाह प्यार और विश्वास करती है अपने पति पर, जिसकी कोई गलती नही होती, अनचाहे ही झूल जाती है, इस त्रिकोणीय सम्बन्ध में| कोई दोष ना होते हुए भी पति का कुछ भी उसे सम्पूर्ण नही मिलता|
सच कहूँ, ऐसे सम्बन्ध अधूरा कर देते हैं तीनों को ही, कोई खुश नही, किसी के हिस्से में पूर्णता नहीं|
होती है तो बस एक छटपटाहट, उस अधूरेपन को पूरा करने की, जिसको शायद कभी पूर्णता नसीब नही होती|

मौलिक व अप्रकाशित
अरुणा राजपूत "राज"
शिक्षिका (हापुड़)
उ०प्र०

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