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देश की आजादी के लिए न जाने कितने शहीदों को कुर्बानी देनी पड़ी । मगर हमें अभी बहुत प्रकार की आजादी चाहिए , जिनके लिए हमें भी निरंतर प्रयास करते हुए संघर्ष करना होगा

सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ 

                    हमें राजनीतिक आज़ादी वर्ष 1947 में मिल गई थी। इसको पाने के लिए अनगिनत देशभक्तों द्वारा तमाम क़ुर्बानियाँ दी गई । कुछ के नाम हमें ज्ञात हैं  पर बहुसंख्यक यूँ ही गुमनामी में देश की ख़ातिर देश की माटी में मिलकर माटी को सुगंधित करते हुए अपनी देह-माटी को धन्य कर गए। सभी को शत् शत् नमन है, वंदन है, उनका बारम्बार अभिनंदन है।
‌           केवल राजनीतिक आज़ादी पर्याप्त नहीं थी। हमें अधिकतम आज़ादी चाहिए थी । मिसाल के तौर पर आर्थिक आज़ादी, सामाजिक आज़ादी, धार्मिक आज़ादी , सभी के लिए समान अवसरों की आज़ादी , अपनी-अपनी अभिरुचि के अनुसार जीवन जीने और जीवन की गुणवत्ता को महत्तम शिखर तक ले जाने की आज़ादी इसलिए , हम भारत के लोगों ने मिलकर अपने लिए संविधान बनाया और उसे अधिनियमित, अंगीकृत और आत्मार्पित किया ।  पर , विगत 73 वर्षों की इस आज़ादी के बाद हम कहाँ तक पहुँच पाए हैं, यह गंभीर चिंतन का विषय है । चिंतन व निरंतर सुधार की गुंजाइश हर समय व हर जगह होती है।
दूसरा विचारणीय विन्दु यह है कि हम ग़ुलामी की ज़ंजीरों में आखि़रकार क्यूँ जकड़े गए थे ? क्या ख़ामियाँ हमारे और हमारे समाज के अंदर रहीं जिसका ख़ामियाज़ा हमें हज़ारों वर्षों तक भुगतना पड़ा था ? आइए हम इन विन्दुओं को अपने चिंतन-मनन के विषयों में शामिल करें , अपने में सुधार करते जाएँ , सशक्त देशभक्त बनें ; और इस प्रकार , स्वयं के व समाज के जीवन की गुणवत्ता में उत्तरोत्तर वृद्धि करते जाएँ...आज़ादी की सालगिरह बहुत बहुत मुबारक हो ! जय हिन्द !

अजय कुमार, आईपीएस

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